बुराई का प्रतीक विकाश दुबे
कंटीली झाड़ियों से बचना ही बेहतर है,
त्याग दो ऐसी राहों को जहाँ चलना भी मुश्किल है,,
मजा पाने के लिये सजा अनिवार्य है प्यारे,
मौत जब आ ही गयी द्वारे समय टालना भी मुश्किल है।........
कर्म करने से पहले जरा सोचो और समझो,
कहीं गलती ना हो जाये, कार्य को टालना चहिये,,
बिना सोचे ही लालचवश कदम को रोकना वाजिब,
कदम रखते डगमगा जाये, अपने को सम्हलना चहिये।.........
ये पेटा ना भरा ना भर रहा, ना कभी भरते देखा है,
समझ यदि अपने अंदर हो, कभी ना कर्म से बिचले,,
रुलाकर क्यों हंसते हो महफ़िल में, वो ऊपर वाला देख रहा,
क्यों दौलत पे मरते हो ना दौलत साथी बनी पगले।..........
नांस क्यों कर रहे अपना जरा बच्चों की तरफ देखो,
ये दुनियाँ बहुत ही जालिम तुझे जड़ से मिटा देगी,,
ये नाजुक तन और मन तेरा क्यों इसको व्यर्था दुःख देते,
पाप की एक ही चिंगारी तुझे पल में जला देगी।..........
विश्व के झूठे रिस्ते-नाते सभी मतलव के साथी है,
विपति में देख छुप जाते कोई भी साथ नहीं देता,,
यदि छोड़ दे मोह माया को ईश्वर पर भार छोड़ अपना,
वही सच्चा एक सेवक है, भंवर में डूबने ना देता।........
ये गाथा विकाश दुबे पर है, जिसने ना सोचा और नहीं समझा,
ढह गये महल काँटों के आप सुख की निंदिया सोये,,
धर्म के कार्य किये होते दुर्दशा ना होती इनकी,
बुराई रह गई जग में, सुनील कविता में व्यंग बोये।.........
सादर अर्पित।
सुनील कुमार
कंटीली झाड़ियों से बचना ही बेहतर है,
त्याग दो ऐसी राहों को जहाँ चलना भी मुश्किल है,,
मजा पाने के लिये सजा अनिवार्य है प्यारे,
मौत जब आ ही गयी द्वारे समय टालना भी मुश्किल है।........
कर्म करने से पहले जरा सोचो और समझो,
कहीं गलती ना हो जाये, कार्य को टालना चहिये,,
बिना सोचे ही लालचवश कदम को रोकना वाजिब,
कदम रखते डगमगा जाये, अपने को सम्हलना चहिये।.........
ये पेटा ना भरा ना भर रहा, ना कभी भरते देखा है,
समझ यदि अपने अंदर हो, कभी ना कर्म से बिचले,,
रुलाकर क्यों हंसते हो महफ़िल में, वो ऊपर वाला देख रहा,
क्यों दौलत पे मरते हो ना दौलत साथी बनी पगले।..........
नांस क्यों कर रहे अपना जरा बच्चों की तरफ देखो,
ये दुनियाँ बहुत ही जालिम तुझे जड़ से मिटा देगी,,
ये नाजुक तन और मन तेरा क्यों इसको व्यर्था दुःख देते,
पाप की एक ही चिंगारी तुझे पल में जला देगी।..........
विश्व के झूठे रिस्ते-नाते सभी मतलव के साथी है,
विपति में देख छुप जाते कोई भी साथ नहीं देता,,
यदि छोड़ दे मोह माया को ईश्वर पर भार छोड़ अपना,
वही सच्चा एक सेवक है, भंवर में डूबने ना देता।........
ये गाथा विकाश दुबे पर है, जिसने ना सोचा और नहीं समझा,
ढह गये महल काँटों के आप सुख की निंदिया सोये,,
धर्म के कार्य किये होते दुर्दशा ना होती इनकी,
बुराई रह गई जग में, सुनील कविता में व्यंग बोये।.........
सादर अर्पित।
सुनील कुमार
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें