(निर्भया)
गिरगिट निवास सूखी डाली,
कुदरत की कृपा भई हरियाली,,
कोमलता पातों ने पाई,
फल, फूल छटा अति दिखलाई,,
खुशियों में मस्त डाली डाली,
कुदरत की कृपा भई हरियाली,,.......
सुंदर, सुखद सवेरा आया,
प्रेम भाव परिवार सिखाया,,
विपरीत समय जब आ जाता है,
ज्ञान, ध्यान सब मिट जाता है,,
नृत्यति कुदिशा सिर मतवाली,
कुदरत की कृपा भई हरियाली,,.......
मद जोवन ने रंग दिखाया,
खींच काल चारों को लाया,,
घर से निर्भया पढ़ने को चाली,
अति सुशील अरु भोली - भाली,,
चारों मवाली पीछे धाये,
पकड़ी निर्भया द्वन्द मचाये,,
कुकरम करि, जान ले डाली,
कुदरत की कृपा भई हरियाली,,
मात-पिता संकट के मारे,
रो-रोकर जीवन धिक्कारे,,
थाना, कोर्ट के चक्कर मारे,
तारीख पे तारीख निहारे,,
जगह-जगह जा गुहार लगाई,
अब तक न्याय मिला नहीं भाई,,.......
सात साल बीते एहिं भाँती,
चिन्ता बनी दिनां अरु राती,,
चाहें कितनी बनजा हांसी,
दुष्टों को लगवानी फांसी,,
अदालत ने अब न्याय सुनाया,
सबको फांसी हुकम सुनाया,,........
22 जनवरी सात बजे,
तिहाड़ में फांसी सेज सजे,,
जब फांसी दिन आयेगा,
निर्भया दिवस कहलायेगा,,
गलती पै गलती मत करना,
फांसी की मौत सभी को मरना,,
जितनी सुनी उतनी कथिडाली,
सुनील कुमार की कविता निराली,,
कुदरत कृपा भई हरियाली,
सूख गई फिर डाली-डाली,,.......
गिरगिट निवास सूखी डाली,
कुदरत की कृपा भई हरियाली,,
कोमलता पातों ने पाई,
फल, फूल छटा अति दिखलाई,,
खुशियों में मस्त डाली डाली,
कुदरत की कृपा भई हरियाली,,.......
सुंदर, सुखद सवेरा आया,
प्रेम भाव परिवार सिखाया,,
विपरीत समय जब आ जाता है,
ज्ञान, ध्यान सब मिट जाता है,,
नृत्यति कुदिशा सिर मतवाली,
कुदरत की कृपा भई हरियाली,,.......
मद जोवन ने रंग दिखाया,
खींच काल चारों को लाया,,
घर से निर्भया पढ़ने को चाली,
अति सुशील अरु भोली - भाली,,
चारों मवाली पीछे धाये,
पकड़ी निर्भया द्वन्द मचाये,,
कुकरम करि, जान ले डाली,
कुदरत की कृपा भई हरियाली,,
मात-पिता संकट के मारे,
रो-रोकर जीवन धिक्कारे,,
थाना, कोर्ट के चक्कर मारे,
तारीख पे तारीख निहारे,,
जगह-जगह जा गुहार लगाई,
अब तक न्याय मिला नहीं भाई,,.......
सात साल बीते एहिं भाँती,
चिन्ता बनी दिनां अरु राती,,
चाहें कितनी बनजा हांसी,
दुष्टों को लगवानी फांसी,,
अदालत ने अब न्याय सुनाया,
सबको फांसी हुकम सुनाया,,........
22 जनवरी सात बजे,
तिहाड़ में फांसी सेज सजे,,
जब फांसी दिन आयेगा,
निर्भया दिवस कहलायेगा,,
गलती पै गलती मत करना,
फांसी की मौत सभी को मरना,,
जितनी सुनी उतनी कथिडाली,
सुनील कुमार की कविता निराली,,
कुदरत कृपा भई हरियाली,
सूख गई फिर डाली-डाली,,.......
bahoot badhiya keep it up
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